- पञ्च नदियों के बीच आदि गंगा गोमती की गोद में
Sunday, April 13, 2014
Wednesday, April 9, 2014
सिरजे हिन्द जौनपुर और मेरी यादें...........
सिराजे हिन्द जौनपुर का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में आलेखित है।कभी मुग़ल साम्राज्य में राजधानी रहा कभी ऋषि मुनियों का केंद्र जौनपुर ।अपने कुछ बतों के लिए आज भी विश्व प्रसिद्ध है चाहे वो मुली हो चाहे मक्का और इत्रा ,आज भी लोग इन वस्तुओं को पसंद करते हैं।कहने को जौनपुर एक छोटा शहर है लेकिन अगर देखें तो क्षेत्रफल के मामले में जौनपुर एक बड़े जिले के रूप में जाना जाता है। जिसमें नौ विधानसभा और दो लोकसभा सदस्य चुने जाते है।शिक्षा के मामले में जौनपुर का अपना एक इतिहास है ,जिसमें आइएस पिसिएस की भरमार है।प्रदेश में जब कोई नौकरी या किसी भी प्रकार की मेरिट बनती है तो जौनपुर का नाम ऊपर ही रहता है ।लेकिन एक बुनियादी सवाल उठता है कि जौनपुर जब इतना संम्पन्न है तो यहाँ मूलभूत सुबिधायें क्यों नहीं हैं ।रोड का हाल देखें तो लगता है कि जैसे यह रोड आदमियों के लिए नहीं जानवरों के लिए बनाया गया हो ।घर से साबुन सैम्पू तेल परफ्यूम लगाकर निकलते है लोग लेकिन घर वापस आने पर भूत जैसे या कह सकते है जानवर हो जाते है ।पेट पलने के लिए लोगों को दिल्ली मुंबई का चक्कर लगाना पड़ता है,जहा वो अपने जीवन अस्तर को गिराकर अपना पेट पालते है। दिल्ली मुंबई जाने के लिए भी कोई खास सुबिधा नहीं है ।रेलवे की लाइन तो है लेकिन रेल की संख्या नहीं,जो है भी उनके टिकट नहीं "चाहिए तो दलालों को तीन गुना दाम दीजिये"।थाने और कचहरी का तो ऐसा हाल है कि बयां करना अपने मानव जाति को गाली देनें जैसा है। थानेदार साहब के यहाँ आम जनता तो पहुँच नहीं सकती बिना दलालों के या कहें बिना पैसे के और कचहरी का भी यही हाल
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है। बड़ी ख़ुशी हुई थी जब मेरे घर के बगल में एक यूनिवर्सिटी का शिलान्यास हुआ था मै बहुत छोटा था मोती लाल बोरा उस समय गवर्नर थे उन्हीं के करकमलों द्वारा फीता कटा तो लगा की अब मेरा जौनपुर बदलेगा ।लेकिन हुआ क्या बिना पैसे के आप अन्दर भी नहीं जा सकते "घुस दो काम हो जायेगा "लगभग जितने भी कुलपति आये उनके अंत में भ्रस्ताचार का दाग चिपक गया ।
जौनपुर में बात राजनीति की करें तो बच्चे को पैदा होते ही शिक्षा दी जाने लगती है राजनीति की जो बड़ा होकर किसी न किसी तरह से राजनितिक पार्टियों का सदस्य बन ही जाता है,कुछ दिन उपरांत कुछ लोग अपना भला बुरा समझते हुए सन्यास लेकर मेरी तरह अपना कैरियर बनाने के फ़िराक में पड़ जाते है ,कुछ उसी राजनीति से अपना दाल रोटी चलाते रहते है।चुनाव का समय आता है सभी छोट भइये नेता कुरता टाईट करके उम्मीदवारों के साथ हो लेते है ,जहाँ उन्हें चलने के लिए लग्जरी गाड़ी उपलब्ध हो जाती है और जेब में कुछ हरी पीली पत्तियाँ बस लगे रहो लगे रहो भैया जी की जय हो करते रहेंगे ।एक नेता जी माननीय सांसद या माननीय विधायक हो जायेंगे और अपना दिल्ली या लखनऊ में आवास बनवा लेगें उनके रिश्तेदार सगे सम्बन्धी ठेकेदार और बिल्डर हो जायेंगे ,बाकि छोट भैये नेता दलाली करने लगेंगे बाकि आम जनता फिर से धुल और मिटटी में लग जाएगी।
कुछ दिन पूर्व लोकसभा का चुनाव है मैदान में कई पहलवान ताल ठोक रहे है जिसमें भारतीय जनता पार्टी के नए नवेले के पी सिंह ,कांग्रेस से भोजपुरी अभिनेता रविकिशन शुक्ल ,बहुजन से सुभाष पांडे ,समाजवादी से पारसनाथ यादव ,नयी नवेली पार्टी जिसका नाम आम आदमी पार्टी से पुराने समाजवादी डॉ के पी यादव और कुछ दबंग मफिया जैसे पूर्व सांसद उमाकांत यादव मैदान में है।
मेरे भी मन में माहौल देखकर एक तरंग उठ रही है कि मै भी इस अखाड़े का करीब से मौजूद होकर नैन रस लूं ।पर मजबूर हूँ ,कर्मभूमि में जो कर्म का भार है उसे निभाने की जो जिम्मेदारी ले रख्खी है।@आशुतोष मिश्र
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