Saturday, June 6, 2020

मोदी सरकार के छह साल :

जानिए केंद्र सरकार ने क्या पाया क्या खोया  6 बड़ी उपलब्धियां और 6 बड़े मुद्दों पर नाकामियां।


30 मई को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक साल पूरे हो गए हैं. मोदी सरकार ने अब तक कुल छह साल का सफर तय किया है. इन छह साल में मोदी सरकार ने कम से कम ये छह बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल और कुल मिलाकर अपने कार्यकाल के छह साल पूरे कर लिए हैं. इन छह सालों के दौरान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने कई बड़े फैसले लिए हैं, जिनकी चर्चा वैश्विक स्तर पर हुई है. पूर्ण बहुमत की बीजेपी सरकार ने अपने छह साल के कार्यकाल के दौरान कई ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो सीधे तौर पर पार्टी और केंद्रीय नेतृत्व की इच्छाशक्ति को जाहिर करती हैं. हम एक-एक करके उन छह उपलब्धियों को समझने की कोशिश करते हैं, जिसे इस सरकार ने पिछले छह साल के दौरान हासिल किया है.

1. कश्मीर के लिए बनी धारा 370 में संशोधन

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से ही कश्मीर का मुद्दा भारत के लिए एक अहम मुद्दा रहा है. आर्टिकल 370 और 35 A के तहत कश्मीर को दिए गए विशेष प्रावधान हमेशा से विवाद का विषय रहे हैं. इसी कश्मीर के लिए बीजेपी की पैतृक पार्टी जनसंघ के पितृ पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नारा दिया कि एक देश में एक विधान और एक संविधान होना चाहिए. पहले जनसंघ और फिर बीजेपी इस मुद्दे पर काम करती रही. 2014 में भी जब मोदी सरकार बनी तो उसकी प्राथमिकता में ये काम था, लेकिन पूरा नहीं हो पाया. तब बीजेपी ने कश्मीर को थोड़ा और बेहतर ढंग से समझने के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार बनाई थी. बाद में सईद के निधन के बाद महबूबा के साथ सरकार बनी, लेकिन फिर बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया.

मई 2019 में जब नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने और अमित शाह के रूप में देश का नया गृहमंत्री तय हुआ तो उसके कुछ ही महीने बाद कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर दिया गया. इसके साथ ही कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया. इतना ही नहीं, ये मोदी सरकार की राजनैतिक इच्छाशक्ति ही थी कि उसने जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेश में बांट दिया. एक हिस्सा बना जम्मू-कश्मीर, जिसमें विधानसभा थी. दूसरा हिस्सा बना लद्दाख, जो बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बना. कश्मीर पर लिए गए इस फैसले का विपक्ष के लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन पूरे एहतियात के साथ मोदी सरकार अपने इस फैसले को लागू करने में कामयाब रही.

2. पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक

1947 के बंटवारे के वक्त से ही हमारे पड़ोसी पाकिस्तान ने आमने-सामने की जंग में हमेशा मुंह की खाई है. इसलिए वो आतंकियों के जरिए कभी कश्मीर तो कभी भारत के दूसरे हिस्सों को अस्थिर करने की कोशिश करता रहा है. चूंकि ये जंग आमने-सामने की नहीं है, तो कई बार चाहते हुए भी भारत इसका जवाब नहीं दे पाता था. लेकिन जब मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 18 सितंबर, 2016 को उड़ी पर आतंकी हमला हुआ तो इसका बदला लिया गया. ये मोदी सरकार की राजनैतिक इच्छाशक्ति ही थी कि उसने हमारे जवानों को सरहद पार करके पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक करने का आदेश दिया.

28 सितंबर, 2016 को भारत के कमांडोज सीमा पार गए, पीओके में बने आतंकियों के लॉन्च पैड तबाह किए और फिर वापस लौट आए. इतना ही नहीं, जब 14 फरवरी, 2019 को बालाकोट में आतंकी हमला हुआ और सीआरपीएफ के हमारे 40 जवान शहीद हुए तो मोदी सरकार ने फिर से इसका बदला दिया. इस बार भी 26 फरवरी को इंडियन एयरफोर्स के फाइटर जेट्स ने बॉर्डर पार किया और पाकिस्तानी सीमा में बने आतंकियों के अड्डों को तबाह कर दिया. बिना बड़ी राजनैतिक इच्छाशक्ति के दुश्मन देश के अंदर अपने जवानों को भेजना और हमले के बाद उन्हें सकुशल वापस लाना संभव नहीं था. लेकिन मोदी सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल में ये फैसले दो बार किए.

3. अल्पसंख्यकों की कुप्रथा तीन तलाक का खात्मा

विपक्षी दलों के तमाम आरोपों के बावजूद मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों से जुड़े कई कड़े फैसले लिए. मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही अल्पसंख्यकों के हितों से जुड़ा एक बड़ा फैसला लिया और एक झटके में तीन तलाक को खत्म कर दिया. हालांकि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के आखिरी दिनों में भी इसकी कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई थी. लेकिन जब मई में पीएम मोदी दोबारा सत्ता में आए तो पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा से 'मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019' को पास करवा दिया गया. राष्ट्रपति राम नाम कोविंद के हस्ताक्षर के बाद ये अध्यादेश कानून बन गया और फिर 1 अगस्त 2019 से देश में एक झटके में तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कहना कानूनन अपराध हो गया.

इससे पहले भी अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरका ने अल्पसंख्यकों से जुड़ा एक फैसला किया था. इस फैसले के तहत मोदी सरकार ने हज पर दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया था. उस वक्त इस फैसले के बाद सरकार की ओर से कहा गया था कि इसकी वजह से केंद्र को करीब 700 करोड़ रुपये की बचत होगी. इसके अलावा भी हज संबंधी एक फैसला हुआ था, जिसकी विपक्ष के साथ ही अल्पसंख्यकों ने भी मुखालफत की थी. इसके तहत मोदी सरकार ने तय किया था कि 45 साल से अधिक उम्र की महिला अकेले भी हज पर जा सकती है.

4. अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मिली नई पहचान

2014 में जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, विपक्ष उनकी एक बात के लिए लगातार आलोचना करता रहा. आलोचना ये कि नरेंद्र मोदी खूब विदेश यात्राएं करते हैं. ये सच भी है, लेकिन ये भी सच है कि इन विदेश यात्राओं के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक अलग पहचान भी बनाई है. पीएम मोदी के अंतरराष्ट्रीय दौरों का ही नतीजा है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने पीएम मोदी को अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया है. इसके अलावा और भी इस्लामिक देशों से पीएम मोदी ने अच्छे संबंध बनाए हैं. इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान के ऐतराज के बाद भी मार्च 2019 में मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइजेश ऑफ इस्लामिक कॉर्पोरेशन ने भारत को मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया था और तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इसमें शामिल भी थीं. इसके अलावा जब धारा 370 हटाने का फैसला हुआ तो पाकिस्तान के ऐतराज के बाद भी कोई मुस्लिम देश पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़ा नहीं हो पाया.

अमेरिका के साथ भी पीएम मोदी ने अपने रिश्ते मजबूत किए. अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के लिए हाउडी मोदी कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने शिरकत की. पीएम मोदी के बुलाले पर ट्रंप भी भारत आए और यहां नमस्ते ट्रंप हुआ. इससे पहले के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ भी पीएम मोदी के अच्छे रिश्ते थे. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का ही नतीजा है कि पूरी दुनिया के प्रतिनिधि संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी है.

5. गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान

1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ओबीसी आरक्षण को मंजूरी दी थी. ये पूरे देश की राजनीति को नई दिशा में ले जाने वाला फैसला था. इस फैसले का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल में ये इच्छाशक्ति नहीं थी कि वो आरक्षण को लेकर कोई नया फैसला कर सके. 2015 में जब बिहार में लोकसभा के चुनाव थे तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर एक बयान दे दिया था. तब बीजेपी और लोजपा एक साथ थे, जबकि जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन था. मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया और वो सत्ता से बाहर हो गई.

इसके बाद किसी राजनीतिक दल में आरक्षण को छूने तक की हिम्मत नहीं बची थी. लेकिन जब मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल के आखिरी चरण में थी, तो उसने सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया. लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मंजूरी लेकर इसे कानूनी रूप दिया गया और अब नौकरियों से लेकर शिक्षण संस्थानों में एडमिशन तक के लिए गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलना शुरू हो गया है. जनवरी, 2019 में लिए गए इस फैसले ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के रास्ते को तय करने में अहम भूमिका निभाई थी.

6. नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में नागरिकता संशोधन कानून को मंजूरी दी गई. ये एक ऐसा फैसला था, जिसके खिलाफ पूरे देश में हिंसक प्रदर्शन हुए. कई लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए. लेकिन सरकार अपने फैसले पर अड़ी रही. इस फैसले के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक यानि कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई के लिए नागरिकता के नए प्रावधान तय किए गए. 10 जनवरी, 2020 को इस कानून के लागू हो जाने से तीन देशों के इन छह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता हासिल करना आसान हो गया. नागरिकता के नए प्रावधानों में मुस्लिम का जिक्र नहीं था, जिसका व्यापक पैमाने पर विरोध हुआ.
इस विरोध की असली वजह ये थी कि इस कानून से कुछ महीने पहले ही असम की एनआरसी की अंतिम लिस्ट आई थी. इसमें करीब 19 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं था, जिनमें अधिकांश लोग बहुसंख्यक थे. इसके बाद असम बीजेपी ने इस एनआरसी की लिस्ट को खारिज कर दिया था. बाद में गृहमंत्री अमित शाह ने पहले लोकसभा में और फिर झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि पूरे देश में एनआरसी होगा. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सीएए लाया ही इसलिए गया है कि असम में एनआरसी के जरिए जिन बहुसंख्यकों का नाम लिस्ट से बाहर है, उन्हें वाया सीएए नागरिकता दे दी जाए. इसका खूब विरोध हुआ. फिर मोदी सरकार की ओर से साफ किया गया कि अभी एनआरसी का कोई प्रावधान नहीं है. और तभी कोरोना आ गया और विरोध प्रदर्शन खत्म हो गए.

राममंदिर निर्माण का विषय बीजेपी पार्टी व मोदी सरकार के लिए जरूर बड़ा मुद्दा रहा है जिसके लिए प्रतिबद्ध होना अलग बात है पर यह न्याययिक फैसला है ।

6 साल पूरे करने के बाद भी केंद्र की मोदी सरकार की कुछ नाकामियां भी रही है जो कि देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थे जिस मुद्दे को उठाकर मोदी व बीजेपी ने पूर्व की यूपीए सरकार को हटाने में कामयाबी हासिल की थी ।

6 बड़ी नाकामियां :

1- कालाधन 2014 के पहले एक ऐसा मुद्दा था जो कि यूपीए सरकार की कब्र साबित हुआ जिस मुद्दे को लेकर बीजेपी व मोदी ने खूब हो हल्ला मचाया था ।मोदी ने अपने एक भाषण में इतना तक कह दिया था कि विदेशों से कालाधन लाकर भारत के प्रत्येक व्यक्ति को 15 लाख मिल सकता है पर सरकार आने के बाद उनके ही राष्ट्रीय अध्यक्ष व हमराही मित्र अमित शाह जो कि अब भाजपा सरकार में नंबर 2 है अपने बयान में 15 लाख की बात को जुमला घोषित कर दिया ।भाजपा व मोदी सरकार के 6 साल पूरे के बाद भी मोदी सरकार ने आजतक 1 रुपये का भी विदेशी कालाधन लाने में नाकाम साबित हुई ,इतना ही नाही इतने बड़े मुद्दे को गायब सा कर दिया ।पिछले कई सालों से न तो बीजेपी उस मुद्दे को उठाती है न ही कोइ विपक्षी दल।

2- महगाई :

2014 के पहले बीजेपी व मोदी ने महगाई को अपना ढाल बनाया था जिसमें पैट्रोल व डीज़ल के दाम में लगातार बढ़ोत्तरी को समय- समय पर उठाया गया जबकि उस समय पैट्रोल व डीज़ल के कच्चे दामों में उछाल था ।जब से मोदी सरकार की भारत मे इंट्री हुई तब से लगातार पैट्रोल व डीज़ल के कच्चे दामों में कमी रही फिर भी मोदी सरकार पैट्रोलियम पदार्थों के दामों में एवरेज कच्चे मूल्य के कम करने में नाकाम साबित हुई।लगातार बढ़ रही महगांई जिसमें समय समय पर प्याज के दालों के दाम ,एलपीजी सिलेंडरों के दाम लगातार बढ़ते रहे जिससे आमजनमानस का बुरा हाल होता रहा पर केंद्र की बीजेपी व मोदी सरकार नियंत्रित करने में नाकाम साबित हुई।

3- भ्रस्टाचार: 2014 के पहले यूपीए सरकार के ख़िलाफ़ देश मे एक भूचाल सा था जिसकी अगुवाई कभी बाबा रामदेव करते तो कभी श्रीमान अन्ना हजारे  तो कभी बीजेपी ,जिसको लेकर यूपीए सरकार की लगातार फ़जीहत देखी गयी कभी कामनवेल्थ घोटाला तो कभी कोल घोटाल ,2जी ,आदर्श सोसायटी, पवन बंसल रेल घोटाला आदि- आदि ,जिसको लेकर यूपीए घिरती गयी   और बीजेपी घेरती गयी। ,ये सब तो देश के नामी घोटाले थे पर ग्राउंड पर देश मे छोटे संस्थान से लेकर बड़े संस्थानों में नित नए घोटालों के आयाम बनते है जिसका सीधा असर आम जन मानस पर पड़ता है जैसे पुलिस महक़मा ,आरटीओ ,पीडब्ल्यूडी, तहसील आदि है जिसमें सुबह से लेकर शाम तक भरस्टाचार को परवान चढ़ाया जाता है। 2014 के बाद जब मोदी सरकार आयी तो लोगों में एक नई उम्मीद थी जो कि मोदी के भाषणों से लोगों को मिली थी कि अब हमें इन सब भरस्टाचारों से निजात मिलेगी पर ग्राउंड पर ऐसा कुछ भी पिछले 6 सालों में नही देखा गया जिससे भरस्टाचार में कमी आयी हो अलबत्ता मोदी सरकार पर भी विपक्ष के द्वारा लगातार भरस्टाचार के आरोप लगते रहे जिसमें महाराष्ट्र चिक्की घोटाला ,राफेल घोटाला व वर्तमान के कोरोना काल मे पीपीई मास्क वेंटिलेटर घोटाला सामने आए जो कि साबित नही हो सके है पर यह भी ध्यान देना होगा कि जो भ्रस्टाचार का आरोप यूपीए सरकार पर लगे थे जिसका जिक्र हमने ऊपर की लाइनों में किया है जिसको लेकर बीजेपी आदि पार्टियां हो हल्ला मचा रही थी 2014 के पहले ,उसमें अधिकतर में यूपीए सरकार बरी हो चुकी है। तो अगर एक लाइन में कहे तो यूपीए और बिजेपी दोनों पर भ्रस्टाचार के आरोप लगते रहे है पर अंतर सिर्फ इतना है यूपीए सरकार कोर्ट से बरी हुई और बीजेपी सरकार अधिकतर मामलों में स्वयं से बरी होती रही है ।

4- नोटबन्दी : 8 नवंबर 2018 शाम् के 8 बजे मोदी जी....मित्रों ,भाइयों एवं बहनों आज रात 12 बजे से 500 और 2000 के पुराने नोट लीगल टेंडर नही रहेंगे ,यह देश के लिए बहुत बड़ा कदम है जिससे आतंकवादियों ,नक्सलियों व भ्रस्टाचारियों की कमर टूट जाएगी और अगर ऐसा नही हुआ तो मुझे चौराहे पर लटका देना ।ये बयान था देश के प्रधानमंत्री बीजेपी के मुखिया नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी के पर देश मे हाहाकार मच गया ,देश के लोग लाइन में लग गए ,कितनों की जाने चली गयी ,कितनों को खड़े खड़े लाइन में बच्चे पैदा हो गए ,बैंको ने जमकर भ्रस्टाचार किया जिसमें एक्सिस बैंक अग्रणी बैंक बन गयी ,रियल एस्टेट पूरा का पूरा तबाह हो गया अगर सीधा सीधा कहा जाय तो देश की इकोनॉमिक्स बिगड़ गया ।जो कि 6 साल होने के बावजूद अभी तक नही सुधरा ऊपर से वर्तमान की कोरोना महामारी ने देश की इकोनॉमी को गर्त में पहुँचा दिया जहाँ आज लोग खाने के लिए व जीवन यापन के लिए तरस रहे है।

5- पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद:2014 के पहले देश मे आतंकवादी घटनाओं पर बीजेपी बहुत ही आक्रामक रहती थी ,मोदी जी ने एक भाषण में कहा था प्रधानमंत्री की ऐसी घटनाओं पर आंखे लाल क्यों नही होती क्यों एक सर के बदले 10 सर नही लाये जाते ,2014 के बाद लगातार पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद बढ़ता रहा जिसका उदाहरण बालाकोट,उरी व अन्य घटनाए है ये सही है कि बीजेपी सरकार व मोदी ने एयर स्ट्राइक करके पाकिस्तान को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जरूर दिखाई पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को रोक पाने में मोदी सरकार नाकाम रही है।

6- कोरोना काल और बतिन्तजामी :
कोविड19 (कोरोना)जैसी महामारी वैसे तो पूरी दुनिया ने पहली बार देखा और झेला है जिसका न तो किसी को रूप पता था न ही रंग मतलब कोविड19 कितना दुष्प्रभावी है और कितना भयंकर इस बात से भारत ही क्या पूरी दुनिया अनभिज्ञ थी ऐसे में मोदी सरकार ने जो कदम उठाए उसे न तो बेहतर कहाँ जा सकता है न ही घटिया क्योकि जिस रोग का न तो कभी रिसर्च हुआ न ही उसका असर पता हो तो उसकी परफेक्ट दवा कोई कैसे दे सकता है ,पर एक बात साफ है कि सरकार और आमजनमानस के बीच की दूरी सबके सामने आ गयी ।मोदी सरकार आमजनमानस को समझने में फेल हुई  जिसका नतीजा रहा कि नोटबन्दी की तरह देश की अवाम एक बार फिर सड़क पर आ गयी ।कौन बृद्ध कौन ,बच्चे ,महिलाएं ,गरीब सब भूख और भय से अस्त व्यस्त देखे गए, कितनो का एक्सीडेंट हुआ कितनों की जान चली गयी ,कितनों की पैर में छाले ,कितने ट्रैन से कटकर स्वर्ग सिधार गए ।लोग 1500 -2000किलोमीटर पैदल ,साइकिल, मोटरसाइकिल, कार आदि से अपने गृह जनपद जाने को मजबूर हो गए।अगर सरकार द्वारा सही समय पर सही निर्णय लिया गया होता तो शायद यह भयानक तश्वीर देश के सामने नही होती ।
इस आर्टिकल के माध्यम से अपना विचार व्यक्त करने की कोशिश है जिसमें कोई भी सरकारी डेटा देने से बचा गया है ,आप सभी से हाथ जोड़कर बिनती है कि अगर आपको लेख अच्छा लगे तो कॉपी पेस्ट न करें बल्कि शेयर करें ।

आशुतोष मिश्र (स्वतंत्र पत्रकार)

Wednesday, February 5, 2020

भागवत कथा की आनंदमयी प्रस्तुति से : भावविभोर होते भक्त ।
नालासोपारा पश्चिम में यशवंत गौरव रहिवासी संघ द्वारा आयोजित भागवत कथा की प्रस्तुति : श्री राजीव जी महाराज के मुखारबिंदु से चल रहा है।
भागवत कथा में लग रहा भक्तों का रेला इस बात का धोतक है कि भक्त और भगवान का प्रेम अघाड़ है।
यशवंत गौरव रहिवासी संघ धर्म जागरण के लिए जिस तरह से पिछले चार वर्षों से भागवत पाठ व नवरात्रि उत्सव का सफ़ल आयोजन कर रहा है उससे हिंदू धर्म व समस्त क्षेत्रवासी आनंद की अनुभूति करते दिखाई दे रहे है ।।    

Monday, July 8, 2019

पुलिस सबकी पुलिस का कौन ?


उल्लेखनीय है कि देश की सबसे बड़ी सिविल पुलिस के पास 82 साल से अपना कोई मुख्यालय नहीं था। आज का दिन उप्र पुलिस के लिए बड़ा दिन है, जब उसे अपना मुख्यालय मिला है। करीब 40178 वर्ग मीटर में फैले पुलिस मुख्यालय भवन को सिग्नेचर बिल्डिंग का नाम दिया गया है। ऐसे में देश की आर्थिक,प्रसासनिक व न्यायिक व्यवस्था के लिए पुलिस रिफॉर्म का होना जरूरी।     
                               

पुलिस बल भारतीय पुलिस अधिनियम १८६१ के तहत ही कार्य कर रही है। पुलिस में राजनीतिक दखल इतना अधिक बढ़ गया है की पुलिस संवैधानिक कम राजनैतिक अधिक दिखाई देती है।लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कानून और राज्यव्यवस्था के सफल संचालन में पुलिस प्रशासन की सफल भूमिका होती है,मगर यह तभी सभव है जब पुलिस महकमे के सभी व्यक्ति अपने कर्तब्यों तथा अधिकारों को भली-भांति समझकर उनका उचित ढंग से निर्हवन करें।यह सच है कि पुलिस बलों को कानून के दायरे में रहकर ही कार्य करना परता है, मगर इन नियम कानून का पता क्या प्रत्येक पुलिसबल को हैं?,क्या पुलिस बल कार्य करने के लिए स्वतंत्र है?,क्या पुलिस समय के साथ अपडेट है ?,क्या पुलिस विभाग को और भी विभागों के अनुरूप सुख सुविधाएं प्राप्त है ?,ऐसे अनेकों प्रश्न है जो पिछले कई सालों से या कहे आज़ादी के बाद से ही बनें हुए है ,जिसका ७१ सालों में किसी भी सरकार ने सुध नही ली जबकि यही एक ऐसा विभाग है जिसपर पूरे सासन व्यवस्था को सुचारू रूप देने की जिम्मेदारी रहती है ।आम जनता की जिम्मेदारी जिसमें सुरक्षा ,राजस्व,प्राकृतिक आपदा ,आपसी सद्भाव आदि आदि विषयों की जिम्मेदारी ,नेताओं के जूते साफ करने(अपवाद) से लेकर उनके खाने ,पीने(अपवाद),सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी ।देश के सुरक्षा की जिम्मेदारी बहुत सी ऐसी जिम्मेदारियां है जो पुलिस विभाग को दी गयी है ।जबकि सुविधा के रूप में पुलिस विभाग के लोगों को ८*८का रूम रहने के लिए ,जीवन यापन के लिए कांस्टेबल स्तर पर ५०२० का मूल व २१६००भत्ता सहित बेतन(अलग -अलग राज्यों में अलग -अलग बेतन हो सकता है) मिलता है अब उसमें एक परिवार खायेगा क्या निचोड़ेगा क्या ।सासन द्वारा पुलिस विभाग को भ्रस्टाचार करने के लिए मज़बूर किया जाता रहा है जिसको हम भलीभांति समझ सकते है ।उदाहरण के रूप में ले तो उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों की कम संख्या का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में 1192 नागरिकों की आबादी पर एक पुलिसकर्मी है जबकि मंत्रालय द्वारा 596 की आबादी पर एक पुलिसकर्मी को नियुक्त करने के आदेश है।  इन्स्पेक्टर और सब इंस्पेक्टरों की भारी कमी हत्याओं और अन्य अपराधों के न ख़त्म होने वाले दौर के बीच प्रदेश पुलिस के ताजा आंकड़े चौंकाते है।  प्रदेश के शहरी  इलाकों में थानों की संख्या ग्रामीण  इलाकों में थानों की संख्या से आधी से भी कम है।  वर्ष 2016 जनवरी तक उत्तर प्रदेश में कुल 1528 थाने थे जिनमे 1023 थाने ग्रामीण इलाकों में और 440 थाने शहरी इलाकों में थे ,आईपीएस, पीपीएस रैंक के अधिकारियों से इतर प्रदेश पुलिस के पास सब इन्स्पेक्टर रैंक के स्वीकृत 19,545 पदों के सापेक्ष केवल 16,440 सब इन्स्पेक्टर हैं,वही 2753 इंस्पेक्टरों के सापेक्ष महज 1899 पद ही भरे हुए हैं।  दुखद यह है कि इंटेलिजेंस विभाग में अपर पुलिस अधीक्षक रैंक के 59 पदों की स्वीकृति है लेकिन केवल 34 पद ही भरे जा सके हैं।   

संख्या बल की कमी से जूझ रहा एसटीएफ  मौजूदा स्थिति में यूपी एसटीएफ भी संख्या बल की भारी कमी से जूझ रही है।  सीधे कहा जाए तो हाल है उससे साफ़ कहा जा सकता है कि  उत्तर प्रदेश आतंकी घटनाओं से मुकाबले के लिए भी कत्तई तैयार नहीं दिखता है। यूपी एसटीऍफ़ में एडिशनल एसपी रैंक के 19 पदों के सापेक्ष महज 8 पदों पर ही नियुक्तियां हुई हैं।  एसटीऍफ़ में कुल स्वीकृत 417 पदों की संख्या के सापेक्ष 265 पदों पर ही भर्तियाँ हुई है। गौरतलब है कि प्रदेश में 2014-15 के दौरान तक़रीबन 37 हजार पुलिसकर्मियों की भर्ती हुई है उसके बाद 2018 में भी पुलिस भर्ती हुई पर अभी भी प्रत्तेक थानों पर संख्या बल की बड़ी कमी है ।

पुलिसिंग सुविधाओं के नाम पर भी उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों को पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं है । गृह मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 45 से 47 फीसदी पुलिसकर्मी अपने परिवार को दी गई आवासीय सुविधा से खुश नहीं हैं।  यह दिलचस्प आंकडा है कि लगभग पौने दो लाख पुलिसकर्मियों के सापेक्ष यूपी पुलिस के पास ,परिवार के साथ रहने के लिए बनाए आवासों की संख्या महज 66 हजार है।  प्रदेश पुलिस की बदहाली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी प्रदेश में 78 पुलिस स्टेशन किराए के कार्यालय में चलते हैं प्रदेश में 51 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं जहाँ फोन नहीं है ,17 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं जहाँ वायरलेस नहीं है।ऐसे में कोई भी यह कहने में थोड़ा भी देर नही लगाता की पुलिस भ्रस्ट है ।इसके लिए सिर्फ पुलिस बल ही नहीं जिमेदार हैं बल्कि पूरा सरकारी तन्त्र जिम्मेदार हैं. हमारे लिए इससे अधिक शर्म कि बात क्या होगी कि आज भारत का पुलिस प्रशासन अंग्रेजों द्वारा बनाए गए सन १८६१ के पुलिस एक्ट से क्रियान्वित है ।पुलिस विभाग पर लगातार आरोप लगता रहा है कि पुलिस लोकतन्त्र की भावनाओ का सम्मान नही करती है,अंग्रेज़ो ने भारतीय क्रांतिकारियों पर नियंत्रण के लिए जो पुलिस तंत्र बनाया था आज भी पुलिस उसी पर चल रही है। 
आज भारत को संवेदनहीन पुलिस चाहिए, रास्ट्रीय सुरक्षा तथा लोकतान्त्रिक मूल्यों को बनाए रखने वाली मानवीय पुलिस चाहिए। 
                     

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से विनम्र अनुरोध है कि जब देश परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है जिसमें कई ऐतेहासिक निर्णय लिए जा चुके है तो ऐसे में लोकतंत्र के प्रसासनिक स्तम्भ का मूल अंग पुलिस विभाग का भी अवलोकन करते हुए मज़बूत व प्रभावी बनाने की दिशा में निर्णय लें जिससे देश की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके ।लेखक(आशुतोष मिश्र) स्वतंत्र पत्रकार है जो कि पुलिस विभाग के स्थिति को सालों से अध्यन कर रहा है।
नेक इरादे से आर्थिक क्रांति का साहस, प्रतिफल शून्य नोटबंदी ।
8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 8:15 बजे नोटबंदी की घोषणा की तो सारे भारत में भूकंप सा आ गया।मैं भी अपने भतीजी के जन्मदिन को सेलिब्रेेेट कर
रहा था तभी टीवी पर चल रहे न्यूज पर ध्यान गया। प्रधानमंत्री जी बोल रहे थे आज आधी रात से 500 और 1000 की नोट लीगल टेंडर नही रहेंगी।यह घोषणा तो कुछ लोगों के लिए युद्ध के ऐलान से भी घातक सिद्ध हुई। उनकी रातों की नींद उड़ गई। कुछ लोग होशोहवास खोते हुए जेवेलर्स के पास दौड़े व् उलटे-सीधे दामों में सोना खरीदने लगे।अगले दिन से ही बैंक व ए टी एम लोगों के स्थाई पते बन गए। लाइनें दिनों दिन भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को दिखानें लगीं। सरकार भी कभी लोगों को राहत देने के लिए व कभी काला धन जमा करने वालों के लिए नए नए कानून बनाती दिखी। कभी बैंक व ए टी एम से पैसे निकलवाने की सीमा घटाना व बढ़ाना व कभी पुराने रुपयों को जमा करवानें के बारे में नियम में सख्ती करना या ढील देना।

दूसरी तरफ सरकार अपने इस निर्णय को सही साबित करने में लगी रही। कभी प्रधानमंत्री व उनकी टीम लोगों को इस नोटबंदी के फायदे गिनाने में लगे रहे कभी पचास दिन का समय मांगते नजर आये। लोगों के अंदर भी बहुत भाईचारा देखने को मिला। अमीर दोस्तों को उनके गरीब नाकारा दोस्त याद आये। अमीर रिश्तेदारों को अपने गरीब रिश्तेदारों के महत्व का एहसास होने लगा। अमीर बेटे की गरीब माँ का बैंक अकॉउंट जो की पिता की मौत के बाद मर चुका था अचानक जिन्दा हो गया। ऐसा लगा मानों पूरी मानवता जिन्दा हो गई।जनता में भी एक आस् जागी की शायद अब हमारे खाते में भी कोई 2 से 4 लाख जमा करने को दे देगा ,मोदी जी ने उसके पहले ही जन धन अकॉउंट ओपेन करवाया था तो लोगों को लगा की शायद मोदी जी जो काला धन पकड़े उसे जनधन अकॉउंट में ट्रान्सफर कर दे वैसे भी 2014 लोकसभा चुनाव के पहले मोदी 15 लाख का न्योता भी दे चुके थे ।


भारतीय जनता उस कड़कड़ाती ठंड में लाइनों में थी ,कुछ की उसी लाइनों में तबियत भी ख़राब हो रही थी ,कुछ की तो मौत भी हुई ,कुछ को तो पुलिस की लाठिया भी खानी पड़ी।इतना ही नही कुछ का जन्म भी उसी लाइनों में हो गया ।मंज़र ऐसा था कि लोग हलकान और परेशान थे ।पर ये वो लोग थे जो अपनी खून और पसीने से ,अपने पति के पॉकेट से एक एक रुपये को जोड़कर इकट्ठा किये थे ,जबकि वही दूसरी तरफ एक ऐसा समुदाय भी देश में था जो करोङो और अरबों का हेराफेरी कर रहा था ।कभी बैंक कर्मचारियों के माध्यम से तो कभी बड़े नेता जी के सहयोग से ।सरकार की मंशा के विपरीत भ्रष्टाचार का बोलबाला चलता रहा ,गरीब लाइनों में हलकान था तो वही पूँजीपति भ्रष्टाचारी लाल और पीले नोट को ग़ुलाबी करते रहे ।जिसका नतीजा रहा कि मोदी जी के बयानों का गुब्बारा पिचक कर रह गया जिसमें उन्होंने आतंकवादियों ,नाकक्सलियों ,भ्रस्तचारियों की कमर तोड़ने का मंशा पाल रखी थी ।


भारत की अर्थव्यवस्था समझने में कही न कही मोदी सरकार से बड़ी भूल हुई उन्हें इस बात का थोड़ा भी बोध नही था कि भारत में अर्थव्यवस्था के दो सिस्टम चलते है जो एक दूसरे के समान्तर है ।एक वो जो बैंकिंग प्रणाली से विशुद्ध रूप दूर है और एक वो जो बैंकिंग प्रणाली के अनुरूप चलते है ।जो बैंकिग प्रणाली में है उनका तो सरकार लेखा जोखा रख सकती है पर उनका लेख जोखा रख पाना मुश्किल है जो रोज कमाते और रोज खाते है जिनकी संख्या भी अधिक है ।इसी का नतीजा रहा की रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को न तो ये पता था कि देश में ब्लैक मनी कितनी थी और नोटबंदी में कितना रिटर्न हुई।

नोटबंदी से सबसे ज्यादा नुक़सान अगर किसी सेक्टर को हुआ तो वो था रीयल स्टेट सेक्टर जो की पूरी तरह से ध्वस्त होने के कगार पर आ कर खड़ा हो गया ।जिस सेक्टर में आज भी लेनदेन हद तक नगदी में होता हो वो भला नोटबंदी में इतना नगद धन कहा से लाते।छोटे मोटे विल्डरों का पूरा बिजनेस ही ब्लैक मनी पर व नगद लेनदेन पर टिका था ।जिसका नतीजा रहा की ऐसे विल्डर बाज़ार से ही ग़ायब हो गये ,जिसकी वजह से मज़दूरों को काम का लाला पड़ गया ।एक तरफ़ बैंको की लाइन दूसरी तरफ़ काम का न मिलना मज़दूरों के लिए नोटबंदी एक अभिशाप साबित हुई।

नोटबंदी से सबसे अधिक लाभ किसी सेक्टर को हुआ तो वह था मीडिया सेक्टर जहाँ हमेशा से ब्लैक मनी को संग्रहीत किया जाता रहा है ।एक तरफ़ जहाँ मीडिया का पॉवर दिखा कर सिस्टम में फेरबदल कर दिया जाता है वही अपनी पहुँच का फ़ायदा उठाते हुए नोटबंदी में भी मीडिया के लोग ब्लैक को व्हाइट करते और करवाते दिखे ।जिसके लिए कही न कही सरकार की भी सहमति थी।

नोटबंदी से एक बात साफ थी की सरकार की मंशा ग़लत नही थी ,सरकार का मानना था कि ज्यादा ब्लैकमनी 500 और 1000 के नोट के रूप में ही संग्रहीत की गयी होंगी ।जिसका उपयोग नक्सलवाद और आतंकवाद प्रयोजन में किया जाता होगा जो की सही भी था ।इसके साथ -साथ देश में इन बड़ी नोट का डुप्लीकेट नोट भी बाज़ार में उपलब्ध हो गयी थी ,जिसको खत्म करना भी जरूरी था जो की हद तक नष्ट करने में सरकार कामयाब हुई ।नोटबंदी के पहले सरकार यह आंकड़ा लगाने में भी असमर्थ थी की देश के ख़ज़ाने में कितना धन किस रूप में है ,जो कि नोटबंदी के बाद साफ हो गया।मोदी सरकार को इस बात का भी पता चल गया की हमारे देश का सिस्टम कैसा है ।सबसे बड़ी बात नोटबंदी से यह रहा कि ब्लैकमनी का संग्रहण करने वालों और भ्रष्ट लोगों को एक संदेश देने में सरकार जरूर कामयाब रही की कभी भी सरकार 8 नवम्बर दोहरा सकती है ।

यह पूरा लेख लेखक का अपना विचार है न कि किसी संस्था का आंकड़ा जिसको क्लेम किया जा सके।
लेखक 
आशुतोष मिश्र (स्वतंत्र पत्रकार)
स्वयं सेवक (नालासोपारा पश्चिम)





Sunday, July 7, 2019

तीन तलाक़

                                 तीन तलाक़                               
तीन तलाक़ को समझने से पहले हमें निक़ाह को समझना जरूरी है ।मुस्लिम समाज में कोई भी पुरुष किसी भी महिला के साथ तभी सम्बन्ध स्थापित कर सकता है, जब वह पुरुष उस महिला के साथ निक़ाह स्थापित करे । मुस्लिम समाज में निक़ाह के अपने क़ायदे कानून होते है, जिसको हम साधारण भाषा में समझौता कह सकते है।जिसमें पुरुष को निक़ाह से पहले समझौते के रूप में मेहर राशि देने की घोषणा करनी पड़ती और सम्बन्ध स्थापित होने से पहले उस मेहर की रक़म को चुकाना भी आवश्यक है ।जिसके बाद अपने वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारियों को उठाने की कसम भी खानी पड़ती है।यहाँ तक की विधि विधान में पूरे देश की सहमति रही है ,जिसको लेकर क़ानून भी इजाज़त देता है।

परन्तु कुछ रूढ़िवादी ,विध्वंशक मुश्लिम समाज के कठमुल्लों की माने जो शरियत शब्द कोआगे करके अपनी मनमानी करते है ,जिनके अनुसार आगे चलकर यदि किसी आपसी वैचारिक मतभेद या फिर किसी भी कारणवश वह पुरुष अपनी पत्नी को किसी भी माध्यम से चाहे वो मोबाइल पर मैसेज भेज कर या फिर स्वयं तीन बार तलाक बोल कर या लिख कर, अपनी पत्नी को और स्वयं को उस वैवाहिक संबंध से किसी भी समय अलग कर सकता है। इसे ही तीन तलाक कहा जाता है यह तलाक़ पति पत्नी दोनों को मानना पड़ेगा।सवाल यहाँ यह उठता है कि जब निक़ाह एक समझौता है तो तलाक़ लेने का अधिकार किसी एक पक्ष को कैसे ?,जब निक़ाह के समय वकील ,पक्षकार ,समाज का रहना जरूरी तो तीन तलाक़ के समय किसी एक का फ़रमान मान्य कैसे?,वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी का कसम खाने वाला एक महिला को बिना उसके मर्ज़ी के लाचार बेवश कैसे छोड़ सकता है ?।कई ऐसे सवाल है जो तीन तलाक़ जैसे वहैयात फ़रमान को असंबैधानिक नही क़ानून विरोधी घोषित करते है।                               
वैसे तो देश को आज़ाद हुए 72वर्ष होने को है पर देश की एक बड़ी आवादी जो की 25 करोड़ के किसी समुदाय की अहम हिस्सा को लगातार हमारी सरकारें ,हमारा समाज नजरअंदाज करता रहा ।क्योंकि राजनैतिक पार्टियों को उस 25 करोड़ के समुदाय में अपना विशेष वोट बैंक दिखता रहा।पुरुष प्रधान मानसिकता महिलाओं का दोहन करती रही ।धार्मिक मुद्दा व शरीयत का उलाहना देते हुए कठमुल्लों ने अपनी हिटलर शाही लगातार उन बेवस ,लाचार महिलाओं पर थोपी ।जबकि समय -समय पर कुछ साहसी महिलाओं ने इसका विरोध भी किया जिसमें शाहबानों का मामला कभी तूल पकड़ा ,लगातार हमारे देश की न्यायलयों में इस कुरीति को क़ानून विरोधी भी सबित किया गया पर वोट की राजनीति और पुरुष प्रधान मानसिकता ने 2014   से पहले इस कुरीति के ख़िलाफ़ न तो किसी को खड़ा होने दिया और न ही इसे खत्म होने दिया ।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा था " जब जब होई धरम की हानि, बारहि असुर अधम अभिमानी, तब तक धर प्रभू विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सच्जन पीड़ा"।समय था 2014 का जब नरेन्द्रमोदी की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनी । सरकार बनते ही कई प्रमुख मुद्दे देश के पटल रखे गए जिसमें तीन तलाक़ एक विशेष मुद्दा रहा।71 वर्षों में पहलीबार किसी सरकार ने मानवता और इस कुरीति की वजह से हो रहे अन्याय को समझा और इससे निज़ात के लिए  देश के संविधान में क़ानून की आवश्यकता महशुस की जिसके बारे में देश के राजनैतिकों को वर्षों पहले सोचने की आवश्यकता थी ।                 

जब जागों तभी सवेरा को तर्ज रखते हुए मोदी सरकार ने दिसंबर 2017 में तीन तलाक़ को रोकने के क़ानून प्रस्तावित किया जिसमें तमाम प्रावधान किये ।प्रस्तावित कानून में एक बार में तीन तलाक या 'तलाक ए बिद्दत' पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने तथा नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति देगा. इसके तहत पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे.मसौदा कानून के तहत, किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा. मसौदा कानून के अनुसार, एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है. यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध होगा. प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होना है.इसके तहत सज़ा का भी प्रावधान किया गया । एक बार फिर पुरुष प्रधान मानसिकता और राजनैतिक रोटी सेकने वाली मानसिकता आड़े आयी और समाज में जगह -जगह शरीयत की दुहाई देकर कुछ कठमुल्ले और राजनैतिकों ने विधवा विलाप करना शुरू कर दिया ।कुछ का कहना था कि ये क़ानून धर्म के ख़िलाफ़ है तो कुछ कहना था कि मोदी सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए क़ानून प्रस्तावित किया ।किसी कठमुल्ले ने ये नही कहा कि समाज के एक वर्ग के लिए यह क़ानून बहुत महत्वपूर्ण है।अगर कानून में कुछ खामियां थी जैसा की हो सकता है पर ये भी संभव था की भविष्य में उसे भी दुरुस्त किया जा सकता था।सुप्रीमकोर्ट ने भी अगस्त 2017 में तीन तलाक़ को अवैधानिक घोषित कर दिया था ।ऐसे में मोदी सरकार ने सितंबर 2018 में तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ अध्यादेश लाकर यह साफ़ कर दिया कि उसकी मानसिकता साफ़ है, जिसको सीतकलीन सत्र दिसंबर 2018 में संसद के दोनों सदनों से पास कराने कि चुनौती थी ।लोकसभा में तो क़ानून पास हो गया पर राज्यसभा में अटक गया।                                               
अब जबकि 2019 में एक बार पुनः मोदी सरकार प्रचंड बहुमत से सरकार में आ चुकी है तो उसकी ज़िम्मेदारी इस कुरीति पर अंकुश लगाने की दोगुनी हो जाती है ।जिससे समाज का बड़ा हिस्सा सम्मान से अपना जीवन यापन कर सके।                               

लेखक                                           
आशुतोष मिश्र (स्वतंत्र पत्रकार)     
स्वयं सेवक (यशवंत गौरव नालासोपारा पश्चिम)

Saturday, March 16, 2019

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Monday, January 23, 2017

जौनपुर 366 सदर विधानसभा का चुनावी अध्यन व् विश्लेषण ।आदि गंगा गोमती के गोद में बसा शहर जौनपुर जिसका इतिहास के पन्नों में भारत की राजधानी के रूप में उल्लेख किया गया है ।ज्यादा इतिहास में न जाते हुए वर्तमान की बात करते है और आप लोगों को कुछ आंकड़ों के माध्यम से यहाँ की वर्तमान राजनितिक परिदृश्य को रखने का प्रयास करता हूँ।जौनपुर में 9 विधानसभा और 2 लोकसभा (जौनपुर,मछलीशहर)है ।

                   2012 विधानसभा चुनाव में एक -एक सीट बीजेपी और कांग्रेस को और बाकि समाजवादी पार्टी को मिली थी ।जौनपुर 366 सदर विधान सभा कांग्रेस के खाते में गयी थी जिसको कांग्रेस के नदीम जावेद ने अपने प्रतिद्वंदी तेजबहादुर मौर्या (पप्पू)को  1239 वोटों से पराजित करते हुए 50863 लोगों का दिल जीता था ।2012 में मुलायम और अखिलेश यादव का बोलबाला माना जा रहा था पर सदर विधान सभा में हवा ऐसी बही की कांग्रेस को विजयश्री मिली।
जौनपुर सदर विधानसभा में पिछले कई वर्षों से एक खास धर्म के लोग ही विधायक चुने जाते है जिसमे बीजेपी के सुरेंद्र प्रताप सिंह एक अपवाद रहे जो 2002 में विजय श्री प्राप्त कर सके ।


अब  हम आपको 2012 सदर 366 विधानसभा चुनाव के कुछ खास आंकड़े प्रस्तुत करता हूँ।


प्रत्याशी                   प्राप्तमत                मतप्रतिशत  
नदीम जावेद (कांग्रेस)  50,863                     25.5  
तेज बहादुर मौर्य(बसपा) 49,624                   24.8
जावेद अंसारी (सपा)     47,724                    23.9
सुरेंद्र प्रताप सिंह(बीजेपी) 30,948                   15.5
अब हम बूथ के आंकड़े देखते है ।जीते हुए प्रत्याशी का 
जीते हुए बूथ   मजबूत बूथ   औसत बूथ  कमजोर बूथ  
  122               33                 105           225
कुल मतों की संख्या है 4,32,192 जिसमें महिला और पुरुषों के उम्र के हिसाब से आंकड़ा इस प्रकार है।


वर्षों       18-24     25-34     35-44     45-54    55-64


पुरुष -41,199    77,535    49,812  34,998  20,159
           9.5%      17.9%     11.5%    8.1%     4.1%


महिला-26,824  58,254  43,111    31,892  18,439

            6.2%     13.5%   10%       7.4%      4%
अगर कुल महिला और पुरुषों की संख्या देखी जाय तो इस प्रकार होगा -
महिला -1,93,768 
पुरुष-   2,38,404 


कुछ मतदाता न पुरुष है न ही महिला जिनकी संख्या न के बराबर है ।जाती और धर्म आधारित आंकड़ा प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है क्योंकि चुनाव आयोग और सुप्रीमकोर्ट की ऐसी ही मंशा है ।उत्तर प्रदेश का चुनाव हो और जाती धर्म की बात न हो ये बड़ा ही मुश्किल है पर कोशिश जारी है ।


पिछले चुनावों में जाती के आधार पर आंकड़े प्रस्तुत किये जाते रहे है, जिसमें समाजवादी पार्टी के खाते में यादव और मुस्लिम वोटों को देखा जाता रहा है, खासकर उत्तर प्रदेश में। जिसे M Y फैक्टर भी कहा जाता था पर वो तब की बात है जब समाजवादी पार्टी के मुखिया और राष्टीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हुआ करते थे, पर आज समाजवादी पार्टी के मुखिया और अध्यक्ष अखिलेश यादव है ।अखिलेश यादव अपनी पुरानी परंपरा से ऊपर उठकर विकास की बात करने की बात कह रहे है ।वही दलित वोट मायावती यानि बहुजन समाज पार्टी के माने जाते रहे है जबकि कांग्रेस में ब्राह्मण स्वर्ण और कुछ मुश्लिम वोटों को गिना जाता रहा है ।जबसे बीजेपी के खेवन हार मोदी जी हुए है ,तब से बीजेपी के वोटों में बड़ी बढत देखि गयी है जिसमें स्वर्ण,अन्य पिछड़े,जाटव वोट माना जाता रहा है ।
पिछले 2012 विधानसभा और 2014 लोकसभा को ध्यान में रखकर बात करे तो जौनपुर की जनता कुछ हदतक पारंपरिक वोटों को धता बताते हुए विकास को तरजीह देते हुए देखि गयी है जिसमें युवावों का अहम् योगदान रहा है ।2012 में 366 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नदीम जावेद ने विकास की बात करते हुए अनेक वादे किए थे जिसे उस समय में क्षेत्र के युवावों ने सराखों पर रखते हुए उन्हें विधायक बना दिया था।बताते है कि नदीम के चुनाव में 15-40 वर्ष के युवावों ने कमान सम्हाल रखी थी ,जिनके पीछे नदीम ने पानी की तरह पैसे उड़ाये थे ।200-300 गाड़िया प्रति दिन प्रचार के लिए निकलती थी ।रहने के लिए होटल और खाने पीने की पूरी व्यवस्था होती थी ,उसीका नतीजा था कि कांग्रेस के पारंपरिक 5 हजार वोट को 50 हजार में बदल दिया गया ।2014 लोकसभा चुनाव में जौनपुर की जनता ने पूरे देश की तरह मोदी जी की विकासवादी आंधी में बह गयी थी ,जिसमें जिले से दो युवा चेहरों को चुन कर देश की संसद में पंहुचा दिया (कृष्ण प्रताप सिंह जौनपुर )(रामचरित्रनिषादमछलीशहर)।

2017 जौनपुर 366 सदर विधानसभा के लिए वैसे तो अभी सभी पार्टियों के उम्मीदवार मैदान में नहीं आए है पर तस्वीर मतदाताओं के सामने जरूर दिखाई देने लगी है ।समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के बाद जहा ज्यादा लोगों का मानना है कि ये सीट कांग्रेस के लिए समाजवादी पार्टी छोड़ देगी, वही मन ही मन कांग्रेसी और खुद नदीम जावेद अखिलेश यादव और राहुल गांधी को शुक्रिया अदा कर रहे है ।पिछले 2 सालों से लगातार तन मन धन से मेहनत कर रहे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को जोर का झटका लगा है ।कहा जाता है कि जावेद सिद्दीकी ने अभी तक करोड़ों रूपये खर्च दिए है जिसमें गाड़ियों का काफिला ,पार्टी कार्यालय का खर्चा और पार्टी का चंदा रहा है।ऐसे में देखने की बात होगी की जावेद सिद्दीकी 2 साल मेहनत करने के बाद क्या ये सीट नदीम जावेद को गिफ्ट में दे देते है या निर्दल चुनाव मैदान में उतरकर ताल से ताल बजाते है ।बीजेपी अभी भी इस ताक में बैठी है कि सपा कांग्रेस गठबंधन से कौन उतरता है फिर जाकर वो अपना पत्ता खोले ।

2017 उत्तर प्रदेश चुनाव जहा अखिलेश यादव और नरेंद्र मोदी के इज्जत का सवाल बनता जा रहा है वही 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है ।जहाँ केंद्र की भाजपा सरकार मोदी के अगुवाई में विधानसभा चुनाव में विकास मॉडल पेश करती हुई दिखाई दे रही है जिसमें शौचालय ,गैस सिलेंडर ,स्वच्छ भारत ,डिज़िटल इंडिया,नोटबंदी को लेकर जा रही है ।वही बीजेपी पार्टी व् उसकी सहयोगी आरएसएस और अन्य हिन्दू पार्टिया धर्म को मुद्दा बनाने में परहेज करती नहीं दिखाई दे रही है ।अखिलेश यादव एक्सप्रेस वे ,मेट्रो,पुलिस 100,महिला हेल्प लाइनऔर एम्बुलेंस को लेकर मैदान में दिखाई दे रहे है ।जिनके साथ कांग्रेस का धब्बा भी साथ- साथ है ।
2017 के चुनाव में धर्म आधार न बना तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने के आसार वही धर्म आधार बना तो बीजेपी होगी प्रदेश की पहली पसंद ।