Sunday, July 7, 2019

तीन तलाक़

                                 तीन तलाक़                               
तीन तलाक़ को समझने से पहले हमें निक़ाह को समझना जरूरी है ।मुस्लिम समाज में कोई भी पुरुष किसी भी महिला के साथ तभी सम्बन्ध स्थापित कर सकता है, जब वह पुरुष उस महिला के साथ निक़ाह स्थापित करे । मुस्लिम समाज में निक़ाह के अपने क़ायदे कानून होते है, जिसको हम साधारण भाषा में समझौता कह सकते है।जिसमें पुरुष को निक़ाह से पहले समझौते के रूप में मेहर राशि देने की घोषणा करनी पड़ती और सम्बन्ध स्थापित होने से पहले उस मेहर की रक़म को चुकाना भी आवश्यक है ।जिसके बाद अपने वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारियों को उठाने की कसम भी खानी पड़ती है।यहाँ तक की विधि विधान में पूरे देश की सहमति रही है ,जिसको लेकर क़ानून भी इजाज़त देता है।

परन्तु कुछ रूढ़िवादी ,विध्वंशक मुश्लिम समाज के कठमुल्लों की माने जो शरियत शब्द कोआगे करके अपनी मनमानी करते है ,जिनके अनुसार आगे चलकर यदि किसी आपसी वैचारिक मतभेद या फिर किसी भी कारणवश वह पुरुष अपनी पत्नी को किसी भी माध्यम से चाहे वो मोबाइल पर मैसेज भेज कर या फिर स्वयं तीन बार तलाक बोल कर या लिख कर, अपनी पत्नी को और स्वयं को उस वैवाहिक संबंध से किसी भी समय अलग कर सकता है। इसे ही तीन तलाक कहा जाता है यह तलाक़ पति पत्नी दोनों को मानना पड़ेगा।सवाल यहाँ यह उठता है कि जब निक़ाह एक समझौता है तो तलाक़ लेने का अधिकार किसी एक पक्ष को कैसे ?,जब निक़ाह के समय वकील ,पक्षकार ,समाज का रहना जरूरी तो तीन तलाक़ के समय किसी एक का फ़रमान मान्य कैसे?,वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी का कसम खाने वाला एक महिला को बिना उसके मर्ज़ी के लाचार बेवश कैसे छोड़ सकता है ?।कई ऐसे सवाल है जो तीन तलाक़ जैसे वहैयात फ़रमान को असंबैधानिक नही क़ानून विरोधी घोषित करते है।                               
वैसे तो देश को आज़ाद हुए 72वर्ष होने को है पर देश की एक बड़ी आवादी जो की 25 करोड़ के किसी समुदाय की अहम हिस्सा को लगातार हमारी सरकारें ,हमारा समाज नजरअंदाज करता रहा ।क्योंकि राजनैतिक पार्टियों को उस 25 करोड़ के समुदाय में अपना विशेष वोट बैंक दिखता रहा।पुरुष प्रधान मानसिकता महिलाओं का दोहन करती रही ।धार्मिक मुद्दा व शरीयत का उलाहना देते हुए कठमुल्लों ने अपनी हिटलर शाही लगातार उन बेवस ,लाचार महिलाओं पर थोपी ।जबकि समय -समय पर कुछ साहसी महिलाओं ने इसका विरोध भी किया जिसमें शाहबानों का मामला कभी तूल पकड़ा ,लगातार हमारे देश की न्यायलयों में इस कुरीति को क़ानून विरोधी भी सबित किया गया पर वोट की राजनीति और पुरुष प्रधान मानसिकता ने 2014   से पहले इस कुरीति के ख़िलाफ़ न तो किसी को खड़ा होने दिया और न ही इसे खत्म होने दिया ।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा था " जब जब होई धरम की हानि, बारहि असुर अधम अभिमानी, तब तक धर प्रभू विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सच्जन पीड़ा"।समय था 2014 का जब नरेन्द्रमोदी की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनी । सरकार बनते ही कई प्रमुख मुद्दे देश के पटल रखे गए जिसमें तीन तलाक़ एक विशेष मुद्दा रहा।71 वर्षों में पहलीबार किसी सरकार ने मानवता और इस कुरीति की वजह से हो रहे अन्याय को समझा और इससे निज़ात के लिए  देश के संविधान में क़ानून की आवश्यकता महशुस की जिसके बारे में देश के राजनैतिकों को वर्षों पहले सोचने की आवश्यकता थी ।                 

जब जागों तभी सवेरा को तर्ज रखते हुए मोदी सरकार ने दिसंबर 2017 में तीन तलाक़ को रोकने के क़ानून प्रस्तावित किया जिसमें तमाम प्रावधान किये ।प्रस्तावित कानून में एक बार में तीन तलाक या 'तलाक ए बिद्दत' पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने तथा नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति देगा. इसके तहत पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे.मसौदा कानून के तहत, किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा. मसौदा कानून के अनुसार, एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है. यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध होगा. प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होना है.इसके तहत सज़ा का भी प्रावधान किया गया । एक बार फिर पुरुष प्रधान मानसिकता और राजनैतिक रोटी सेकने वाली मानसिकता आड़े आयी और समाज में जगह -जगह शरीयत की दुहाई देकर कुछ कठमुल्ले और राजनैतिकों ने विधवा विलाप करना शुरू कर दिया ।कुछ का कहना था कि ये क़ानून धर्म के ख़िलाफ़ है तो कुछ कहना था कि मोदी सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए क़ानून प्रस्तावित किया ।किसी कठमुल्ले ने ये नही कहा कि समाज के एक वर्ग के लिए यह क़ानून बहुत महत्वपूर्ण है।अगर कानून में कुछ खामियां थी जैसा की हो सकता है पर ये भी संभव था की भविष्य में उसे भी दुरुस्त किया जा सकता था।सुप्रीमकोर्ट ने भी अगस्त 2017 में तीन तलाक़ को अवैधानिक घोषित कर दिया था ।ऐसे में मोदी सरकार ने सितंबर 2018 में तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ अध्यादेश लाकर यह साफ़ कर दिया कि उसकी मानसिकता साफ़ है, जिसको सीतकलीन सत्र दिसंबर 2018 में संसद के दोनों सदनों से पास कराने कि चुनौती थी ।लोकसभा में तो क़ानून पास हो गया पर राज्यसभा में अटक गया।                                               
अब जबकि 2019 में एक बार पुनः मोदी सरकार प्रचंड बहुमत से सरकार में आ चुकी है तो उसकी ज़िम्मेदारी इस कुरीति पर अंकुश लगाने की दोगुनी हो जाती है ।जिससे समाज का बड़ा हिस्सा सम्मान से अपना जीवन यापन कर सके।                               

लेखक                                           
आशुतोष मिश्र (स्वतंत्र पत्रकार)     
स्वयं सेवक (यशवंत गौरव नालासोपारा पश्चिम)

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