Monday, July 8, 2019

नेक इरादे से आर्थिक क्रांति का साहस, प्रतिफल शून्य नोटबंदी ।
8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 8:15 बजे नोटबंदी की घोषणा की तो सारे भारत में भूकंप सा आ गया।मैं भी अपने भतीजी के जन्मदिन को सेलिब्रेेेट कर
रहा था तभी टीवी पर चल रहे न्यूज पर ध्यान गया। प्रधानमंत्री जी बोल रहे थे आज आधी रात से 500 और 1000 की नोट लीगल टेंडर नही रहेंगी।यह घोषणा तो कुछ लोगों के लिए युद्ध के ऐलान से भी घातक सिद्ध हुई। उनकी रातों की नींद उड़ गई। कुछ लोग होशोहवास खोते हुए जेवेलर्स के पास दौड़े व् उलटे-सीधे दामों में सोना खरीदने लगे।अगले दिन से ही बैंक व ए टी एम लोगों के स्थाई पते बन गए। लाइनें दिनों दिन भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को दिखानें लगीं। सरकार भी कभी लोगों को राहत देने के लिए व कभी काला धन जमा करने वालों के लिए नए नए कानून बनाती दिखी। कभी बैंक व ए टी एम से पैसे निकलवाने की सीमा घटाना व बढ़ाना व कभी पुराने रुपयों को जमा करवानें के बारे में नियम में सख्ती करना या ढील देना।

दूसरी तरफ सरकार अपने इस निर्णय को सही साबित करने में लगी रही। कभी प्रधानमंत्री व उनकी टीम लोगों को इस नोटबंदी के फायदे गिनाने में लगे रहे कभी पचास दिन का समय मांगते नजर आये। लोगों के अंदर भी बहुत भाईचारा देखने को मिला। अमीर दोस्तों को उनके गरीब नाकारा दोस्त याद आये। अमीर रिश्तेदारों को अपने गरीब रिश्तेदारों के महत्व का एहसास होने लगा। अमीर बेटे की गरीब माँ का बैंक अकॉउंट जो की पिता की मौत के बाद मर चुका था अचानक जिन्दा हो गया। ऐसा लगा मानों पूरी मानवता जिन्दा हो गई।जनता में भी एक आस् जागी की शायद अब हमारे खाते में भी कोई 2 से 4 लाख जमा करने को दे देगा ,मोदी जी ने उसके पहले ही जन धन अकॉउंट ओपेन करवाया था तो लोगों को लगा की शायद मोदी जी जो काला धन पकड़े उसे जनधन अकॉउंट में ट्रान्सफर कर दे वैसे भी 2014 लोकसभा चुनाव के पहले मोदी 15 लाख का न्योता भी दे चुके थे ।


भारतीय जनता उस कड़कड़ाती ठंड में लाइनों में थी ,कुछ की उसी लाइनों में तबियत भी ख़राब हो रही थी ,कुछ की तो मौत भी हुई ,कुछ को तो पुलिस की लाठिया भी खानी पड़ी।इतना ही नही कुछ का जन्म भी उसी लाइनों में हो गया ।मंज़र ऐसा था कि लोग हलकान और परेशान थे ।पर ये वो लोग थे जो अपनी खून और पसीने से ,अपने पति के पॉकेट से एक एक रुपये को जोड़कर इकट्ठा किये थे ,जबकि वही दूसरी तरफ एक ऐसा समुदाय भी देश में था जो करोङो और अरबों का हेराफेरी कर रहा था ।कभी बैंक कर्मचारियों के माध्यम से तो कभी बड़े नेता जी के सहयोग से ।सरकार की मंशा के विपरीत भ्रष्टाचार का बोलबाला चलता रहा ,गरीब लाइनों में हलकान था तो वही पूँजीपति भ्रष्टाचारी लाल और पीले नोट को ग़ुलाबी करते रहे ।जिसका नतीजा रहा कि मोदी जी के बयानों का गुब्बारा पिचक कर रह गया जिसमें उन्होंने आतंकवादियों ,नाकक्सलियों ,भ्रस्तचारियों की कमर तोड़ने का मंशा पाल रखी थी ।


भारत की अर्थव्यवस्था समझने में कही न कही मोदी सरकार से बड़ी भूल हुई उन्हें इस बात का थोड़ा भी बोध नही था कि भारत में अर्थव्यवस्था के दो सिस्टम चलते है जो एक दूसरे के समान्तर है ।एक वो जो बैंकिंग प्रणाली से विशुद्ध रूप दूर है और एक वो जो बैंकिंग प्रणाली के अनुरूप चलते है ।जो बैंकिग प्रणाली में है उनका तो सरकार लेखा जोखा रख सकती है पर उनका लेख जोखा रख पाना मुश्किल है जो रोज कमाते और रोज खाते है जिनकी संख्या भी अधिक है ।इसी का नतीजा रहा की रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को न तो ये पता था कि देश में ब्लैक मनी कितनी थी और नोटबंदी में कितना रिटर्न हुई।

नोटबंदी से सबसे ज्यादा नुक़सान अगर किसी सेक्टर को हुआ तो वो था रीयल स्टेट सेक्टर जो की पूरी तरह से ध्वस्त होने के कगार पर आ कर खड़ा हो गया ।जिस सेक्टर में आज भी लेनदेन हद तक नगदी में होता हो वो भला नोटबंदी में इतना नगद धन कहा से लाते।छोटे मोटे विल्डरों का पूरा बिजनेस ही ब्लैक मनी पर व नगद लेनदेन पर टिका था ।जिसका नतीजा रहा की ऐसे विल्डर बाज़ार से ही ग़ायब हो गये ,जिसकी वजह से मज़दूरों को काम का लाला पड़ गया ।एक तरफ़ बैंको की लाइन दूसरी तरफ़ काम का न मिलना मज़दूरों के लिए नोटबंदी एक अभिशाप साबित हुई।

नोटबंदी से सबसे अधिक लाभ किसी सेक्टर को हुआ तो वह था मीडिया सेक्टर जहाँ हमेशा से ब्लैक मनी को संग्रहीत किया जाता रहा है ।एक तरफ़ जहाँ मीडिया का पॉवर दिखा कर सिस्टम में फेरबदल कर दिया जाता है वही अपनी पहुँच का फ़ायदा उठाते हुए नोटबंदी में भी मीडिया के लोग ब्लैक को व्हाइट करते और करवाते दिखे ।जिसके लिए कही न कही सरकार की भी सहमति थी।

नोटबंदी से एक बात साफ थी की सरकार की मंशा ग़लत नही थी ,सरकार का मानना था कि ज्यादा ब्लैकमनी 500 और 1000 के नोट के रूप में ही संग्रहीत की गयी होंगी ।जिसका उपयोग नक्सलवाद और आतंकवाद प्रयोजन में किया जाता होगा जो की सही भी था ।इसके साथ -साथ देश में इन बड़ी नोट का डुप्लीकेट नोट भी बाज़ार में उपलब्ध हो गयी थी ,जिसको खत्म करना भी जरूरी था जो की हद तक नष्ट करने में सरकार कामयाब हुई ।नोटबंदी के पहले सरकार यह आंकड़ा लगाने में भी असमर्थ थी की देश के ख़ज़ाने में कितना धन किस रूप में है ,जो कि नोटबंदी के बाद साफ हो गया।मोदी सरकार को इस बात का भी पता चल गया की हमारे देश का सिस्टम कैसा है ।सबसे बड़ी बात नोटबंदी से यह रहा कि ब्लैकमनी का संग्रहण करने वालों और भ्रष्ट लोगों को एक संदेश देने में सरकार जरूर कामयाब रही की कभी भी सरकार 8 नवम्बर दोहरा सकती है ।

यह पूरा लेख लेखक का अपना विचार है न कि किसी संस्था का आंकड़ा जिसको क्लेम किया जा सके।
लेखक 
आशुतोष मिश्र (स्वतंत्र पत्रकार)
स्वयं सेवक (नालासोपारा पश्चिम)





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