Monday, March 28, 2011

गीत गाता चल

गीत गाता चल मुसाफिर जिंदगी की रह में 
गम के आशू पोछ ले ,खुशियों की बाहें थाम ले
हर घडी रोता तू क्यों है ,क्या था जो गया
रात होती है तो क्या, सुबह भी होती जान ले
गीत गाता चल मुसाफिर ,जिंदगी की रह में !


खूबसुरत जिंदगी से हर एक पल जा रहा
कल को तू सोचेगा ,कल क्या था और अब क्या रहा
नौजवानी बह न जाये, आसुओ की धार में
गीत गात चल मुसाफिर ,जिंदगी की राह में !


हर तरफ दुखों की बहार ,क्यों तू देखता
तेरे सामने अपनों की कतार,क्यों नहीं देखता
देख ले ताकत है कितनी ,यारो के प्यार में
गीत गाता चल मुसाफिर ,जिंदगी की राह !



महकता रहूँ दिल में तेरे ,फूल बनकर तब तक
चाँद और सूरज आसमाँ में ,चमकते रहे जब तक
मांगता हूँ बस यही ,खुदा की पनाह में
गीत गाता चल मुसाफिर ,जिंदगी की राह में !

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