Monday, March 28, 2011

मच्छर उवाच

आइल समय हमरो हो गैले बहार
बिना अस्तित्व के संख्या भइल हजार !
हमसे त आज सबही त डेराला
पंखा चलाय के चदरा में ढुक जा ला !
मनवा में आवेला तो मधुर गीत गायीला
नहीं तो केहू के कनवो में घुस जयीला!
हमसे बचे बिना लोग का का करेला
केहू मोटिन तो केहू मस्किटो लगावेला !
ऐसे समय हम गाना न गायीला
बल्कि कही कोने में घुस जयीला !
डाक्टर के डिस्पेंसरी हमही त चलायिला
केहू के मलेरिया तो के टायफाइड होवाइला!
जहा जमे पानी हम उही घर बनाइला
रात के उड़ी के हम सबही के घर जयीला !
अब चाहे केव होवय बाभन ठाकुर चमार
आइल समय हमरो हो गईल बहार !


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